जलता लद्दाख पूर्ण राज्य का दर्जा

एम. एस. चौहान

देहरादून- लद्दाख 31.10.2019 को जम्मू एण्ड कश्मीर पुर्नगठन अधिनियम के पारित होने के बाद केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में स्थापित हुआ एवं वर्तमान में लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और इसकी सांस्कृतिक एवं भाषाई पहचान के संरक्षण के लिए छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक प्रावधानों की मांग जोरो पर है व लद्दाख के युवा केन्द्र सरकार से सरकार गठन से पूर्व सरकार द्वारा किये गये वादे को याद दिलाते हुए आन्दोलन पर हैं। पूर्ण राज्य के दर्जे को लेकर पिछले काफी समय से लद्दाख केन्द्र शासित राज्य सुलग रहा है परन्तु केन्द्र सरकार द्वारा अपने पिछले रव्वैये को दौहराते हुए, किसी भी लोकतांत्रिक आन्दोलनों के प्रति केन्द्र सरकार द्वारा जिस प्रकार का बेरूखा नजरिया रखा गया है उसी को आगे बढ़ाते हुए, लद्दाख में पूर्ण राज्य के दर्जे को लेकर चल रहे आन्दोलन में उसी नजरिये को बदस्तूर जारी रखा। पिछले कुछ समय से लद्दाख में पूर्ण राज्य के दर्जे को लेकर जनता शान्तिपूर्ण आन्दोलन पर रही, लद्दाख व उक्त आन्दोलन का प्रमुख चेहरा सोनम वांगचुक व कुछ अन्य आन्दोलनकारी पिछले कुछ समय से पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग को लेकर अनशन पर रहे। उक्त आन्दोलन के प्रमुख मुद्दे लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची का विस्तार, लेख व कारगिल के लिए अलग-अलग लोक सभा सीट व रोजगार में आरक्षण हैं जिसको लेकर पिछले कुछ समय से लद्दाख की जनता अपने प्रमुख चेहरे सोनम वांगचुक की अगुवाही में एक शान्तिपूर्ण आन्दोलन, अनशन पर रही परन्तु 14 दिन के अनशन के उपरान्त अनशन में सम्मिलित एक वृद्ध महिला व पुरूष की अचानक तबीयत खराब हो जाने के कारण इस शान्तिपूर्ण आन्दोलन ने आगजनी व हिंसक रूप धारण कर लिया तथा युवा आन्दोलनकारियों द्वारा केन्द्र सरकार की राजनैतिक पार्टी कार्यालय को भी आग के हवाले कर दिया गया। इस आन्दोलन के हिंसक होने का पूर्ण श्रेय केन्द्र सरकार की अन्देखी को जाता है। इस शान्तिपूर्ण अनशन आन्दोलन के हिंसक होने के उपरान्त सोनम वांगचुक द्वारा अपना अनशन वापस लेते हुए कहा गया कि ‘‘यह बहुत दुखद है’’ उक्त आन्दोलन में पुलिस झड़प में चार जानें गयी एवं कई अन्य घायल हुए। 1979 के बाद यह सबसे बड़ी हिंसक घटना कही जा सकती है। यह केन्द्र सरकार की भारी चूक व लापरवाही कही जानी चाहिए क्योंकि केन्द्र सरकार का उक्त मुद्दे को लेकर जिस प्रकार का रुख रहा है वह उक्त आन्दोलन को नजरअंदाज करने जैसा है। लद्दाख के राज्यपाल कविन्द गुप्ता द्वारा उक्त घटना पर दिया गया बयान अपने आप में लद्दाख पर केन्द्र सरकारी की राजनीति का चहरा व रुख स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है व लद्दाख में उनकी प्रशासनिक पकड़, आन्दोलन की स्थिति को भी दर्शाता है। सोनम वांगचुक द्वारा जिस छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा की मांग पर बल दिया जा रहा है उसके तहत स्वदेशी आबादी के सांस्कृतिक, भाषाई और भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक प्रावधानों की मांग की जा रही है जिसकी कमी भारतवर्ष के कुछ अन्य राज्यों में भी उजागर हुई है परन्तु राजनैतिक संगठनों के निजी हित व इच्छा शक्ति की कमी के कारण इस प्रकार के जनहित से जुड़े मुद्दे अधर में लटके रहते हैं। केन्द्र सरकार द्वारा बातचीत के लिए 06 अक्टूबर 2025 का समय निर्धारित किया गया, इस प्रकार का ढुल-मुल रवैय्या केन्द्र सरकार की नियत पर संदेह उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त है जब कि लद्दाख जल रहा है उसके उपरान्त भी केन्द्र सरकार इस मुद्दे को दबाना व नजरअंदाज, गैरजरूरी समझ रही है।