-एम एस चौहान
देहरादून – 07.10.2023 हमास द्वारा इजराइल के सीमान्त क्षेत्र पर किये गये हमले में अब तक लगभग सम्भवतः 1 लाख लोगों के हताहत होने की सम्भावना गैर अधिकारिक रूप से जताई जा रही है। गाजा जो कि पश्चिम एशिया के दक्षिणी लेवेंट क्षेत्र में स्थित दो फिलिस्तीनी क्षेत्रों में से एक छोटा क्षेत्र है जो फिलिस्तीन राज्य का निर्माण करते हैं एवं हमास जो कि फिलिस्तीनी सुन्नी इस्लामी कट्टरपंथी संगठन है जिसकी स्थापना 1987 में मुस्लिम ब्रदरहुड की एक शाखा के रूप में हुई थी। पिछले दो वर्षों में इजराइल द्वारा गाजा पर किये गये ताबड़तोड़ हमले व देश-दुनिया में इन हमलों को लेकर हुई सियासत अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के सीज फायर के प्रस्ताव के साथ समाप्त होती दखाई दी जिसका कि देश-दुनिया व फिलिस्तीन व इजराइल के नागरिकों द्वारा सबसे ज्यादा गरमजोशी के साथ स्वागत किया गया तथा कहीं ना कहीं इन बेबात की बात पर अथवा सियासत के सियासी दाव-पेचों एवं राजनेताओं के निजी स्वार्थों के कारण गैर जरूरी चलने वाली अथवा खिंचने वाली जंगो के चहरे भी उजागर होते दिखे। हमास द्वारा किये गये हमले में मारे गये इजराईली नागरिकों के परिणाम स्वरूप हुई खून-खराबे से भरी जंग ने दिनांक 09.10.2025 अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा रात्रि को की गयी सीजफायर के प्रस्ताव के बाद नया मोड़ ले लिया। दुनिया भर के सभ्य राष्ट्रों द्वारा हमास के द्वारा किये गये हमले की घोर निन्दा की गयी तथा इस हमले में मारे गये इजराईली नागरिकों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की गयी। परन्तु उक्त नरसंहार की घटना मात्र एक देश द्वारा दूसरे देश के नागरिकों को हताहत करने तक ही सीमित नहीं रही बल्कि दुनिया भर के तथाकथित सभ्य राष्ट्रों के दौहरे मापदण्ड व राजनीतिक महत्वकांक्षा के दौहरे चरित्र को भी उजागर करती है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प व दुनिया के बहुतेरे देश जहां पूर्व में इजराइल के साथ खड़े थे और फिलिस्तीन, चरमपंथी हमास के विरोधी दिखाई दे रहे थे एवं इजराइल की बदले की कार्यवाही को जायज व जरूरी ठहरा रहे थे इस युद्ध में हुए भीषण नरसंहार एवं जान-माल के बेजा नुकसान के बाद ट्रम्प के समर्थन में कहीं ना कहीं दिखाई दिये, पिछले कुछ समय में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प दोनों राष्ट्रों के मध्य शान्ति दूत बन, शान्ति वार्ता के साथ दिखाई दिये। देश दुनिया के इस बनते बदलते रुख का कारण अमेरिकी राष्ट्रपति की नोबेल पुरूस्कार जीतने की महति महत्वकांक्षा है जिसमें कि देश दुनिया के तथाकथित सभ्य राष्ट्र अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ हाथ में हाथ मिलाये खड़े होते लगे, सत्य तो यह है कि इस भीषण नरसंहार में सीजफायर के ट्रम्प के प्रस्ताव पर इजराइल व फिलिस्तीनी नागरिकों के मध्य इस सीजफायर को हाथों-हाथ लिया गया एवं दोनों राष्ट्रों के नागरिकों द्वारा उत्साह के साथ इस युद्ध विराम का गर्मजोशी से स्वागत किया गया तथा दोनों राष्ट्रों के नागरिकों द्वारा इस युद्ध के कारण हुए भीषण नरसंहार की भर्त्सना की गयी तथा सीजफायर पर खुशी जाहिर की गयी। उक्त प्रकरण से सत्यता दर्पण के समान स्पष्ट होती दिखाई देती है इस प्रकार के युद्ध देश दुनिया के मुखियाओं एवं राजनीतिक दलों के लिए मात्र अपनी राजनीतिक पहचान व चहरा बनाने व व्यक्तिगत उपल्बिधयों को हासिल करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है चाहे इसके लिए उनको कितनी ही देश व देश के बाहर जंगे करवानी पड़ें व लड़नी पडं़े। राष्ट्रपति ट्रम्प के नोबेल पुरूस्कार प्राप्त करने की अभिलाषा व नोबेल पुरुस्कार के लिए खुद को नॉमिनी कराने तक ट्रम्प द्वारा पिछले काफी समय से एक शान्तिदूत का चहरा देश-दुनिया के सामने रखा गया तथा उनकी शान्ति नोबेल पुरुस्कार जीतने की तीव्र इच्छा ने, इजराइल व फिलिस्तीन के मध्य सीजफायर को जन्म दे दिया, जो ट्रम्प पहले पूर्ण रूप से इजराइल के साथ खड़े थे व युद्ध को हवा दे रहे थे, वह इजराइल को युद्ध विराम के लिए बाद में प्रेरित करते व धमकाने लगे। यह नोबेल पुरूस्कार की चाह ही है कि उनके द्वारा युद्ध विराम के लिए दिन-रात राजनीतिक एवं कूटनीतिक प्रयास किये जाने लगे परन्तु दुनिया के शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प शान्ति नोबेल पुरुस्कार से चूक गये। नाबेले परुस्कार देने वाली संस्था द्वारा तकनीकी आधार पर भी ट्रम्प के आवेदन पर विचार नहीं किया गया। इस सीजफायर के प्रथम चरण के साथ ही अब तक की सूचनानुसार लगभग 401 सहायक ट्रक (राहत) फिलिस्तीन गाजा जायेंगे एवं युद्ध बन्दियों को सौंपा व आदान-प्रदान किया जायेगा व इजराइल सेना पीछे हटेगी। इजराइल सेना कितना पीछे हटेगी यह आने वाला समय ही बतायेगा क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प कितने विश्व शान्ति के प्रतीक एवं सजक संवेदनशील हैं पूर्व के निर्णय बताने के लिए पर्याप्त हैं जिस प्रकार से डब्लू0एच0ओ0 जैसी संस्था में भी अब उनकी रूचि कम दिखाई देती है वह उनके शान्ति दूत होने पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिए पर्याप्त है। जहां तक उक्त सीज फायर की विवेचना की जाये तो यह बात स्पष्ट एवं उजागर होती है कि दुनियाभर के मुखिया कितने शान्ति के समर्थक हैं? देश दुनिया के राष्ट्रों के मुखिया वर्तमान समय में अपने देश व देश के बाहर जिस प्रकार की राजनीतिक व कूटनीतिक भाषा/नीति का प्रयोग कर रहे हैं वह अपने आप में अत्यन्त दुखद व चिन्ताजनक है देश-दुनिया के राजनेताओं की राजनीतिक महत्वकांक्षा कहीं ना कहीं मानवीय मूल्यों के विपरीत है जिस कारण देश दुनिया में आपसी सौहार्द व मानवता को गहरा अघात लगा है। ईमानदारी से उक्त विषय की विवेचना की जाये तो, तथाकथित सभ्य राष्ट्रों के शान्ति दूतों की धरातलीय विचारधारा व सोच कितनी मानवीय मूल्यों के समीप है उक्त प्रकरण में अगर देश-दुनिया के सभ्य राष्ट्र ईमानदारी से उक्त युद्ध को रोकना चाहते तो कहीं पहले कम से कम जन-धन की हानि पर फीलिस्तीन इजराइल के मध्य चलने वाला यह युद्ध इतना भयावह नहीं होता और ना ही मानव अधिकारों का उल्लंघन होता। यह तो अमेरिकन राष्ट्रपति ट्रम्प की शान्ति नोबेल पुरुस्कार जीतने की अभिलाषा ने व शान्तिदूत की छवि को बनाने की इच्छा ने उक्त सीजफायर को जन्म दिया जिसका कि तहे दिल से स्वागत किया जाना चाहिए।
